कुछ याद आया और मुद्दे गुजर गई हवा का झोन का आया पता चला वाह बगल से
मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024
शनिवार, 5 अक्टूबर 2024
वेवफ़ा
सारा अरमान भले दिल में दफन रह जाएगा,
और एक बार वो वेवफ़ा चली गई, उसके
जाने के बाद तू कभी ना पछताएगा,
अब जब तू उससे जायेगा,
आखिरी बार उसका कब्र पी फूल चढ़ने जाएगा
शुक्रवार, 20 सितंबर 2024
रविवार, 15 सितंबर 2024
कनेरी का सच
रविवार, 8 सितंबर 2024
ज्वाला माई की खिचड़ी और गोरखनाथ
ये कहानी नाथ पंथ के सिद्ध गुरु गोरखनाथ की है। एक समय गुरु गोरखनाथ आध्यात्मिक भ्रमन पर थे तब शक्तिपीठ कांगड़ा के ज्वाला देवी पहुंचे। ज्वाला देवी ने उन्हें खिचड़ी का निमंत्रण दिया। यहां एक कुंड है जहां पानी उबलता रहता है, यहीं वह पात्र है जिसमें ज्वाला माई खिचड़ी बनाती है, गोरखनाथ ने अपनी बिभूति इस कुंड में डाल दी थी l जिससे यहाँ पानी छूने पर ठंडा है l बात यह थी कि गोरखनाथ वैष्णव थे और वहां मांस मदिरा चढ़ाया जाता था, इसलिए गोरखनाथ ने कहा ज्वाला माई मैं आपके निमंत्रण को नहीं ठुकरा सकता, पर माई जो भिक्षा मांग कर लूंगा, उसीसे से खिचड़ी बनाना तो मैं खाऊंगा, ज्वाला माई पानी उबालने लगी, और गोरखनाथ भिक्षा मांगने चले गये। इस कुंड का पानी उसी इंतजार में उबल रहा है, कि गोरखनाथ भिक्षामांग कर लाएंगे, और ज्वाला माई के हाथ की बनी खिचड़ी खाएंगे। कहते हैं ज्वाला मां अभी तक इंतजार कर रही है, इसी इंतज़ार में कुंड का पानी उबल रहा है, और अभी तक गोरखनाथ नहीं आए । इसी उपलक्ष्य में मकर संक्रांति को यहां खिचड़ी बनाई जाती है, और सबसे पहले नाथ पंथ के पुजारी द्वार गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है, और फिर भक्तों में बटता है। यहां गोरख डिब्बी में उबलते पानी को धूप या ज्योत दिखाने पर आग की लपेटे उभरती हैं पर छूने में यह ठंडी है। मकर संक्रांति के दिन ज्वाला मां के दरबार में लोग माथा टेकने आते हैं और आशीर्वाद लेते हैं।
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