शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

इश्क़

चुप रहना आपकी फ़िदरत है, मैं आपसे बात किये बिना रह पाऊं ये मेरी आदत नहीं

रविवार, 15 सितंबर 2024

कनेरी का सच



 ये कहानी भागलपुर जिले में जगदीशपुर के पास एक छोटे से गांव कनेरी की है।  ये कहानी मेरे ही ऑफिस में काम करनेवाले एक स्टाफ बंटी की है।  साल 2008, जब वह 12 साल का था। तो अपने दोस्तों के साथ मिलकर आम के बगीचे से आम चुराने का प्लान बनाया |  कनेरी गांव के पास आम का एक बहुत बड़ा बगीचा था|  बंटी अपने 3-4 दोस्तों के साथ रात को करीब 1 बजे आम का बगीचा पहुंचे। जैसे ही वे लोग आम का बगीचा पहुंचे उन्हें देखकर बहुत आश्चर्य हुआ क्यों कि वहां आम का पेड़ तो था पर उसमें आम नहीं था। जब कि दिन मैं उन्होंने पेड़ पर बहुत सारे आम लटके हुए देखे थे।सभी सोच में पड़ गए कि पेड़ पर दिन में तो आम थे पर रात को कहां गायब हो गए| तभी बंटी को जोर से लघुशंका लगी और वह एक पेड़ के नीचे लघुशंका करने लगा जब वह लघुशंका कर रहा था तभी उसे लगा जैसा कोई उसके गाल को छू रहा है उसने अटपटे ढंग से बालों को अपने चेहरे से हटा दिया लेकिन फिर वह बाल उसके गाल को छूने लगा| इस बार बंटी को बड़े जोर से गुस्सा आया और उसने उस बाल को जोर से खींचा तभी बंटी ने अपनी तिरछी नजर से देखा एक भयावह चेहरा बंटी की तरफ बड़े गुस्से से देखते हुए चिल्लाई | यह देख बंटी के होश हवा हो गए | और    बंटी अपनी जान बचकर वहां से भागा| दरअसल वह चुडैल रात में आम के पेड़ पर लेट कर आराम कर रही थी और आम के पेड़ से लटकते हुए उसके बाल बंटी को परेशान कर रहे थे।  जो बंटी समझ न पाया और उसने उसके बालों को पकड़ कर खींचा | बंटी का कलेजा तो शेर का था, जो वहां से भाग निकला नहीं तो चुड़ैल का भयावह चेहरा देखकर किसी को भी हार्ट अटैक आ जाए| उसके चेहरे की कल्पना मात्र से ही बंटी का दिल अभी भी दहल जाता है जो बंटी ने बयां किया वह उजली साड़ी पहनी हुई थी, उसके बाल को जोरों से खिंचने से वह बंटी परआग बबूला थी, जैसे उसे वो कच्चा चबा जाएगी |बंटी किसी तरह वहां से जान बचाकर भाग निकला जिसके लिए ऊपर वाले का वह अभी भी शुक्रिया अदा कर रहा है |आज भी उस वाकया को याद कर बंटी के रोंगटे खड़े हो जाते है| 

रविवार, 8 सितंबर 2024

ज्वाला माई की खिचड़ी और गोरखनाथ



ये कहानी नाथ पंथ के सिद्ध गुरु गोरखनाथ की है।  एक समय गुरु गोरखनाथ आध्यात्मिक भ्रमन पर थे तब शक्तिपीठ कांगड़ा के ज्वाला देवी पहुंचे।  ज्वाला देवी ने उन्हें खिचड़ी का निमंत्रण दिया।  यहां एक कुंड है जहां पानी उबलता रहता है, यहीं वह पात्र है जिसमें ज्वाला माई खिचड़ी बनाती है, गोरखनाथ ने अपनी बिभूति इस कुंड में डाल दी थी l  जिससे यहाँ पानी छूने पर ठंडा  है l बात यह थी कि गोरखनाथ वैष्णव थे और वहां मांस मदिरा चढ़ाया जाता था, इसलिए गोरखनाथ ने कहा ज्वाला माई मैं आपके   निमंत्रण को नहीं ठुकरा सकता, पर माई जो भिक्षा मांग कर लूंगा, उसीसे से खिचड़ी बनाना तो मैं खाऊंगा, ज्वाला माई पानी उबालने लगी, और गोरखनाथ भिक्षा मांगने चले गये।  इस कुंड का पानी उसी इंतजार में उबल रहा है, कि गोरखनाथ भिक्षामांग कर  लाएंगे, और ज्वाला माई के हाथ की बनी खिचड़ी खाएंगे।  कहते हैं ज्वाला मां अभी तक इंतजार कर रही है, इसी इंतज़ार में कुंड का पानी उबल रहा है, और अभी तक गोरखनाथ नहीं आए । इसी उपलक्ष्य में मकर संक्रांति को यहां खिचड़ी बनाई जाती है, और सबसे पहले नाथ पंथ के पुजारी द्वार गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है, और फिर भक्तों में बटता है।  यहां गोरख डिब्बी में उबलते पानी को धूप या ज्योत दिखाने पर आग की लपेटे उभरती हैं पर छूने में यह ठंडी है।  मकर संक्रांति के दिन ज्वाला मां के दरबार में लोग माथा टेकने आते हैं और आशीर्वाद लेते हैं।