औरत से ही घर शोभा पाता है।औरत ही पुरुषों का घर रचाती बसाती है ।फर भी सदियों से जुल्म सहती आ रही है औरतें । जो कभी रुकने का नाम नही लेता। कब मिलेगी इन्हे इस पुरुष प्रधान समाज में आजादी ।घुट घुट कर सांस लेती।मुझे अभी भी सुनाई दे रही है उनकी सिसकियाँ ।मुझे अब उस महुआ घटवारिन की कहानी याद आ जाती है। महुआ के प्यार की दर्द भरी दास्तान ।जो पुरुष के द्वारा छली गयी।महुआ नदी के तट पर रहनेवाली एक जवान लङकी की कहानी है ।जो अपनी सौतेली माँ के जुल्म को सहती नवयौवना बनी।महुआ की सौतेली माँ ने उसे किसी सौदागर के हाथों बेच दिया ।महुआ ने सौदागर के साथ नाव पर नदी पार करते हुए नदी में छलांग लगा दी ।उस सौदागर के सेवक को भी महुआ से प्यार हो गया था।यह देख उसने भी नदी में छलांग लगा दी ।महुआ एक घटवारिन थी ।नदी में तैरना भलीभांति जानती थी।वो नदी के विपरीत दिशा में भी तैरते हुए किनारे तक आ गयी।पर वो सौदागर का सेवक नदी में ङुबने लगा।महुआ ने तैरकर उसकी जान भी बचाई।इस तरह वो सौदागर के चंगुल से बच निकली।सौदागर का सेवक भी महुआ से प्यार करने लगा था।दोनों ने साथ जिंदगी बिताने का निशचय किया। वो लङका (सौदागर चा सेवक) किसी नौटंकी कंपनी में काम करने लगा ।और महुआ को पैसे कमा कमा कर देने लगा।पर एक दिन वो लङका नौटंकी कंपनी में काम करने को घर से निकला ।फिर वो लौटकर कभी नही आया ।महुआ उसकी राह तकती रही।वो रोज़ घाट पर उसका इंतज़ार किया करती थी।उसकी याद में बचैन रहती। अपना सर पटकती।भोली भाली महुआ अभी तक ये समझ नही पायी थी।उस लङके ने उसके साथ धोखा किया है।वो कभी वापस नही आएगा ।पुरुष स्वभाव से ही छलिया होता है।महुआ उस लङके के द्वारा छली गयी।महुआ रोती बिलखती रही ।पर वो लङका कभी लौटकर नही आया ।यही थी महुआ की दर्द भरी कहानी ।वो नदी जो अभी भी निश्छल और शांत बह रही थी।जिस घाट के किनारे महुआ पली बढ़ी ।मुझे अभी भी सुना रही थी महुआ के प्यार की दर्द भरी दास्तान ।उसके सुने जीवन की कहानी ।
भावात्मक रचना। औरत के दर्द की बानगी।
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